अक्सर सोचा करती हूँ
क्यूँ दुनिया से डरती हूँ
मन यादों का राह है
इससे मैं गुजरती हूँ
झील तेरे अहसासों का
बनकर नाव उतरती हूँ
तू एक दर्पण जिसमे
मैं सजती संवरती हूँ
तेरे ख्वाबो में आकर
मैं हर रोज़ निखरती हूँ
क्या तेरे दिल पर कभी
बनकर चोट उभरती हूँ
तू एक समंदर जिसे
बूँद बूँद मैं भरती हूँ ||
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Sweet poem!
By: Soyeb on अक्टूबर 10, 2009
at 10:29 पूर्वाह्न
GOOD POEM
By: sanjay bhaskar on अक्टूबर 10, 2009
at 2:10 अपराह्न
बहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
By: sanjay bhaskar on अक्टूबर 10, 2009
at 2:10 अपराह्न
तू एक समंदर जिसे
बूँद बूँद मैं भरती हूँ ||
bahut bahut sunder
By: vipingoyal on अक्टूबर 10, 2009
at 2:45 अपराह्न
narayan narayan
By: govind goyal,sriganganagar on अक्टूबर 10, 2009
at 2:46 अपराह्न
तू एक समंदर जिसे
बूँद बूँद मैं भरती हूँ ||
लाजवाब कविता है बधाई और शुभ्akामनायें
By: nirmla.kapila on अक्टूबर 10, 2009
at 3:29 अपराह्न
choti bahar ki hindi gazal. bahut sundar. komal ekantik bhavon ka alhad sa nartan. lekin kasey jane ki gunjaish hai.
By: shyam on अक्टूबर 10, 2009
at 5:03 अपराह्न
Sundar rachana…..aise hee likhatee rahiye.
shubhkamnayen.
Poonam
By: Poonam on अक्टूबर 10, 2009
at 6:07 अपराह्न
कल्पना भारती जी – आपकी रचना को पढ़कर बहुत अच्छा लगा। छोटे बहर की इस बेहतरीन गजल ने मन मोह लिया। शब्द-भाव संयोग की सुन्दर रचना।
जब इसे गुनगुनाने लगा तो कहीं कहीं प्रवाह में रुकावट महसूस हुई। फिर मैंने आपके ही शब्दों को बस आगे पीछे करके निम्न शेर को निम्न प्रकार से सजाया है-
राहें मन की यादों में
उससे रोज गुजरती हूँ
तू एक दर्पण है जिसमे
सजती और सँवरती हूँ
तेरे ख्वाबो में आकर
मैं भी रोज़ निखरती हूँ
कभी तेरे दिल पर मैं क्या
बनकर चोट उभरती हूँ
ऐसा एक समन्दर है तू
बूँद बूँद मैं भरती हूँ
दरअसल आपके मेल एड्रेस के अभाव में मैं इसे टिप्पणी में भेज रहा हूँ।
वैसे आपकी इस रचना ने मुझे आपके लेखन के प्रति बहुत आकर्षित किया है।
उम्मीद है अन्यथा नहीं लेंगी।
सादर
श्यामल सुमन
http://www.manoramsuman.blogspot.com
By: shyamalsuman on अक्टूबर 11, 2009
at 4:47 पूर्वाह्न
नारीगत सौन्दर्यबोध और समर्पण के भावों को अभिव्यक्त करती यह ग़ज़ल खूब
पसंद आई……….. जीवन के समस्त रंगों में सबसे खूबसूरत रंग है प्यार और प्यार
के इर्द गिर्द बुनी गई रचना भी प्यार की ही भान्ति प्यारी होती है
आपको बधाई इस रचना के लिए……….
आगे और उम्दा रचनाएं भी आप प्रस्तुत करेंगी , ऐसा मेरा विश्वास है
By: albela khatri on अक्टूबर 11, 2009
at 6:18 पूर्वाह्न
चिटठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
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हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits – रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
By: amit k sagar on अक्टूबर 11, 2009
at 9:34 पूर्वाह्न
कम शब्दों में अच्छी अभिव्यक्ति
By: Dr. Mahesh Sinha on अक्टूबर 11, 2009
at 12:25 अपराह्न
सुंदर रचना है और आपकी सफलता के लिए शुभकामनाएं व्यक्त करता हूं ।
By: मुकेश पोपली on अक्टूबर 11, 2009
at 2:17 अपराह्न
bahut sunder kavita,tuk me kuch kamee hai jo abbhyaas se door hogi.meri shubh kamnaye.
dr.bhoopendra
By: dr.bhoopendra on अक्टूबर 11, 2009
at 5:36 अपराह्न